देवास। तपागच्छ के वर्तमान सुविशाल गच्छाधिपति आचार्य श्री जयघोष सूरीश्वरजी म.सा. ने बुधवार 13 नवम्बर को दोपहर 3 बजे अहमदाबाद में समाधिपूर्वक, नवकार महामंत्र का स्मरण करते हुए अपने मोक्ष प्राप्ति के लक्ष्य एवं उद्देश्य को पूर्ण किया। आपके देवलोक गमन से भारतभर सहित देवास के जैन समाज में शोक की लहर फैल गई। आपके जाने से जैन समाज को एक अपूर्णीय क्षति हुई है। पूज्य आचार्य 1100 से अधिक साधु साध्वियों के गच्छ नायक गुरू थे। आपने अपने जीवन में साधना, आराधना एवं उपासना करते हुए सैकड़ों जिन मंदिर, उपाश्रय, गौशाला, भोजन शाला एवं सेवाधाम का निर्माण किया। अनेक पदयात्राओं को आयोजित कर लाखों भक्तों को तीर्थ यात्रा का लाभ दिलवाया। आचार्यश्री 45 आगमों के प्रकांड विद्वान थे, सभी शास्त्र आपको मुखपाठ थे। समाज सेवा के क्षेत्र में आपने अपना संपूर्ण जीवन न्यौछावर कर दिया। आचार्यश्री में समता, ममता एवं क्षमता के अद्भुत दर्शन होते हैं। आचार्यश्री का सन् 2002 में देवास नगर में पदार्पण हुआ था। आपके सानिध्य में टेकरी स्थित जैन मंदिर में रायण पगला की पावन प्रतिष्ठा हुई थी। देवास में श्री शत्रुंजयावतार तीर्थ, गुरू मंदिर, देवमंदिर, अहिंसा भवन एवं उपाश्रय का निर्माण भी आपके आशीर्वाद एवं प्रेरणा से किया गया। वर्तमान समय में आचार्य श्री राजेन्द्र सूरी, हेमचंद्र सूरी, गुणरत्नसूरी, रत्नसुंदर सूरी आदि 50 आचार्य आपके गच्छ में जिन शासन सेवा के कार्य प्रतिपादित कर रहे हैं। आपकी आज्ञा से ही अनुयोगाचार्य श्री वीररत्न विजयजी म.सा. को विगत 9 मार्च को शिवपुर मातमोर तीर्थ में मालव विभूषण पद से विभूषित किया गया।
श्रद्धांजलि एवं गुरू गुणानुवाद सभा
श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ मंदिर तुकोगंज रोड पर गुरूवार को प्रात: 9.30 बजे साध्वीजी सुधर्मगुणा श्रीजी के सानिध्य में श्रद्धांजलि एवं गुरू गुणानुवाद सभा का आयोजन रखा गया है। ट्रस्ट मण्डल ने सभी समाजजनों को गुरू चरणों में भावांजलि अर्पित करने का अनुरोध किया है।
भारत भर केे जैन समाज को अपूर्णीय क्षति हुई